Sunday, March 8, 2015

तुम्हारी अस्वीकृति के बावज़ूद ,,, गीता पंडित

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तुम्हारी अस्वीकृति के बावज़ूद ___






जीना है स्वाभिमान के साथ

 बस इतनी सी बात  


ओ समय !

तुम्हारी हर अस्वीकृति के बाद भी ...

बढ़ते रहेंगे मेरे कदम

इसी दिशा में


जानती हूँ

फूलों की सेज नहीं हैं ये रास्ते

लेकिन नहीं डरती लहुलुहान होने से


डरना मैं भूल गयी हूँ

याद है तो बस इतना

हर पल मेरा है

मेरे लिए है

ये सारी दुनिया मेरी है

जिसे मुझे देखना है

महसूस करना है

अपने रोम-रोम में


तुम्हारी लाख दुत्कार के बावज़ूद

मैं निराश नहीं हूँ


ओ धरती!

निश्चिंत रहना

तुम्हें उठाये हुए अपने हाथों में

मैं दौडती रहूँगी तब तक

जब तक कि तुम

होने में अपना होना महसूस ना कर लो
-गीता पंडित
8 मार्च 15
( अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस  पर सभी स्त्रियों को समर्पित )

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