Monday, April 14, 2014

पुस्तक समीक्षा -बात बोलेगी ...... गीता पंडित



पुस्तक का नाम : 'बात बोलेगी…' 
विषय :     साक्षात्कार 
लेखक :     योगेन्द्र वर्मा  व्योम '
प्रकाशक :   गुंजन प्रकाशन 
                सी.130 , हिमगिरि कॉलोनी , काठ रोड मुरादाबाद ( उ. प्र. )
दूरभाष :     94128-05981 . मो.. 99273-76877
email  :    vyom70@gmail.com
मूल्य :        300 रु.


साक्षात्कार किसी व्यक्ति की अंतरंगता और विचार का ही बोध नहीं करातेवे रचनाकार की रचना प्रक्रिया तथा समकालीन लेखन के संदर्भ में उनकी व्यक्तिगत भावनाओं से भी परिचित कराते हैं इसीलिये आज हिंदी साहित्य की नवीनतम विधाओं में 'साक्षात्कारप्रथम श्रेणी में गिने जाते हैं ।  सद्य: प्रकाशित 'बात बोलेगी नवगीतका योगेन्द्र वर्मा 'व्योमद्वारा लिए गए साक्षात्कारों का एक ऐसा संकलन है जिसमें हिंदी साहित्य के महत्वपूर्ण हस्ताक्षरों से परिचित होने का सुअवसर मिलता है । उनकी अंतरयात्रा का सहयात्री बनना रोचक लगता है । सबसे मज़ेदार बात यह है कि पाठक को गद्य की नीरसता का भान नहीं होता बल्कि अंत तक पढ़े जाने की मांग करता है जिससे इसकी उपयोगिता बढ़ जाती है । 
'बात बोलेगी ' - योगेन्द्र वर्मा 'व्योमकी यह पुस्तक केवल साक्षात्कारों का पुलिंदा नहीं है। यह रचनाकारों के साथ हुई आत्मीय बातचीत द्वारा दर्शाये गए वो पहलू हैं जिनसे पाठकवर्ग हमेशा अनभिज्ञ रहता है । ये साक्षात्कार गीत , नवगीत , ग़ज़ल पर लिए गए वो दस्तावेज़ हैं जो समय की धरोहर हैं | पाठकों के लिये लाभप्रद व अध्ययन-कर्ताओं के लिये विशेष उपयोगी और सहायक साबित हो सकते हैं । गद्य होते समय में लय ताल सुर की बात करते हैं  , सरगम के उस देश की बात करते हैं जो जीवन के हर छोर पर साथ चलती है नवगीत बनकर ग़ज़ल बनकर  स्मरण कराते हैं उस परम्परा का उस गीत साधना का जो साहित्य में निरंतर बदलती ,दम तोड़ती व्यवस्थाओं के मध्य वैदिक काल से वर्त्तमान तक अपने किसी न किसी रूप में विद्यमान है ,  और जीवित है । 
इस संकलन में लेखक ने नये पुराने १५ गीत नवगीतकारों तथा ग़ज़लकारों के साक्षात्कार शामिल किये हैं जो उस समय की सामाजिकसाहित्यिक गतिविधियों का सहज रूप से परिचय कराते हैं। कविता और गीत कीसहयात्रा में गीत की टूटन बिखरन विसर्जन से लेकर नवगीत की मंगलमयी यात्रा के सहगामी बनते हैं | छायावादी कहकर गीत को नकार देने वाले रहस्यों से पर्दा उठाते हैं | गीत नवगीत के अंतर को बड़ी बौद्धिकता से दर्शाते हैं । 
लगभग साठ के दशक के पश्चात जब काव्य में अस्वीकार और आक्रोश के स्वर अपनी तीव्रतम स्थिति में थे तब नये प्रतीक नये बिम्ब नई कहन सहज और सरल भाषा के साथ कुछ स्वर उभरने लगे  | बस यही नवगीत का ऊषाकाल था । डॉ. शिवबहादुर भदौरिया छायावाद और प्रयोगात्मक समय के रचनाकार हैं जिनसे इस पुस्तक का प्रारम्भ होता है । अत: यह स्पष्ट हो जाता है कि इन साक्षात्कारों के माध्यम से योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'का उद्देश्य काव्यात्मक प्रक्रिया के साथ-साथ युग का बोध कराना भी है ।  
वरिष्ठ साहित्यकार श्री देवेन्द्र शर्मा इंद्र ' के अनुसार सृजनकर्म वाकिंग स्टिक है , बैसाखी नहीं । वह बखूबी अपने साक्षात्कार में गीत नवगीत के अंतर को स्पष्ट करते हैं। शंभूनाथ  सिंह के गीत की एक बानगी आप भी देखिये जो एक श्रेष्ठ किन्तु परंपरागत नवगीत है  ----
 समय  की शिला पर मधुर चित्र कितने 
किसी ने बनाये किसी ने मिटाये 
इसके विरुद्ध अब इस नवगीत को भी पढ़िए जो अपने समय का एक श्रेष्ठ नवगीत है -----
 पुरवैया  धीरे बहो
मन का आकाश उड़ा जा रहा है 
गीत नवगीत का यह अंतर भ्रम फैलाने वाली उस सोच पर कुठाराघात करता है जो नवगीत को छायावादी कहकर उसके रास्ते की रुकावट बनती हैं और नवगीत को समकालीन साहित्य से अलग थलग करती है , यह कहकर कि नवगीत सामाजिक सरोकारों की बात नहीं करता । 
डॉ. शिवबहादुर सिंह भदौरियाब्रजभूषण सिंह गौतम अनुराग ' , देवेन्द्र शर्मा ' इंद्र ' , सत्यनारायण अवधबिहारी श्रीवास्तव शचीन्द्र भटनागर डॉ माहेश्वर तिवारी मधुकर अष्ठाना , मयंक श्रीवास्तव डॉ. कुँवर बेचैन , ज़हीर क़ुरैशी डॉ ओमप्रकाश सिंह डॉ राजेंद्र गौतम आनंदकुमार गौरव ' , डॉ कृष्णकुमार नाज़ '  इन १५ रचनाकारों के साक्षात्कार का यह अद्वितीय बगीचा है जिसमें अपनी-अपनी  मौलिकता के रंग बिखरते हुए भी सब एक ही धरातल पर खिलकर अपनी खुशबु फैला रहे हैं ।
डॉ. शिवबहादुर सिंह भदौरिया कहते हैं कि नवगीत चर्चा के केंद्र में आ चुका है । नई पीढ़ी गीत नवगीत लेखन में सजगता और निष्ठा से प्रवृत है इसलिये गीत नवगीत का भविष्य पूर्णतया उज्ज्वल और मांगलिक बनारहेगा। डॉ राजेंद्र गौतम नई पीढ़ी की बात करते हुए स्वीकारते हैं कि नई पीढ़ी के सामने बड़ी चुनौतियां हैं । 
ब्रजभूषण सिंह गौतम अनुराग के अनुसार   गीत कविता के रस कलश होते हैं । गीत को लेकर एक ऐसी लामबंदी सामने है जो प्रसाद तुलसी तक को विवरण में नहीं लाती । विवाद हमेशा अहितकर होता है | इस धड़ेबंदी में गीत का नुकसान अवश्य हुआ है , पर गीत आज भी है और आगे भी रहेगा । 
दुरूह कहकर गीत को नकार दिया जाता है | ऐसे में अपने साक्षात्कार में गीतकार सत्यनारायण स्पष्ट करते हैं कि दुरुहता गीत की प्रकृति नहीं है । भूख और जहालत की ओर बढ़ रही ज़िंदगी को रचना के धरातल पर झेलने का माद्दा आज के नवगीतकारों में है । ----
सपने आने वाले कल के
टूट टूटकर होंगे पूरे 
आज भले अधबनेअधूरे 
नाम पते में उथल - पुथल के '
नवगीत की भाषा आम बोलचाल की भाषा हैवह आम जीवन को चित्रित करता है , जहाँ देशज शब्दों का बहुतायत में प्रयोग होता है |  इसलिये आज दुरूह कहकर या जन विरोधी कहकर नवगीत को प्रताड़ित करने वाले कविता के सिरमौरों को समझना होगा कि नवगीत भी उतना ही समकालीन है जितना आज की कविता । डॉ ओमप्रकाश सिंह सामाजिक सरोकारों की बात करते हुए बताते हैं कि नवगीत सामाजिक सरोकार के केंद्र में है । 
अवधबिहारी श्रीवास्तव मानते हैं कि कविता की सब संतानों का योग एक ही है । ' शांतिकुंज पत्रिका से जुड़े  हुए शचीन्द्र भटनागर नए-नए  प्रयोगों के नाम पर स्वीकार करते हैं कि प्रयोग के नाम पर प्रयोग नहीं होने चाहियें । अतिवाद कभी भी स्वीकार्य नहीं होता है । उनकी एक उर्दू बहर की हिंदी ग़ज़ल के अंश आप भी देखिये ----
दोस्त दुनिया में हम आये हैं किसलिये सोचें 
इस ज़माने के लिये काम क्या किए सोचें 
खुद जलें सबके घर-आँगन का अंधेरा काटें 
क्यों न बन जाएँ इस तरह के हम दिए सोचें ॥ 
डॉ. माहेश्वर तिवारी प्रयोगशीलता का स्वागत करते हैं जबकि आनंदकुमार गौरव कहते हैं कि प्रयोग के नाम पर खिलवाड़ क्यों । मधुकर अष्ठाना का मानना है कि गीत विधा नहीं परम्परा है । मयंक श्रीवास्तव कविता लेखन को कला मानते हैं । डॉ. कुँवर बेचैन का ये दृढ विश्वास है कि गीत कभी मर ही नहीं सकता । छायावाद के पश्चात काव्य में आये परिवर्त्तनों और उनके कारणों पर उन्होंने विशेष रूप से प्रकाश डाला है । 
ऐसा नहीं कि केवल नवगीतकारों को ही योगेन्द्र वर्मा 'व्योमने महत्वपूर्ण माना है । ग़ज़ल विधा को भी समान रूप से इस संकलन में शामिल किया है | ज़हीर क़ुरैशी ,जो गीतकार और ग़ज़लकार दोनों हैं , कहते हैं कि हिंदी ग़ज़ल भी गीति काव्य ही है । उन्होंने ग़ज़ल विधा पर विशेष प्रकाश डाला है जो किसी भी पाठक के लियें लाभप्रद हो सकता है ।  डॉ कृष्णकुमार नाज़ '  कहते हैं कि ग़ज़ल नई विधा नहीं है और वर्त्तमान ग़ज़ल सरोकारों का आईना है। 
अंत में अंतिम श्वासें लेती हुई कविता में जीवन की वापसी तभी सम्भव है जब उसे जीवन चक्र से जोड़ा जाए। लय जीवन का अभिन्न अंग है।  लोकगीत आज भी ग्राम्य परिवेश को व्यक्त करता है । हर अभाव से ग्रस्त होते हुए भी गीत की मधुर ताल पर थिरकते मज़दूर के पाँव उसे पलभर के लिये ही सही ,  सुक़ून से जीने का अवसर तो देते ही  हैं ।  

 'बात बोलेगी'  यह संकलन विशेष रूप से आज पढ़ा जाना चाहिए,  जिससे गीत नवगीत के विषय में तथाकथित मान्यताएं दुरुस्त हो सकें और नवगीतकार भी साहित्य की मुख्यधारा से जुड़कर समीक्षकों की दृष्टि का केंद्र बन सकें   
यह बहुत ही श्रमसाध्य कार्य था जिसका लेखक ने सफलता पूर्वक निर्वहन किया है | साहित्यकार योगेन्द्र वर्मा 'व्योमनिश्चय ही बधाई के पात्र हैं ।  

अशेष शुभ कामनाएँ ...... 
गीता पंडित 
( नवगीतकार )
सम्पादक 'शलभ प्रकाशन 
मो. नं. 09810534442
मेल :  gieetika1@gmail.com

1 comment:

Unknown said...

इस समीक्षा लेख के जरिये "बात बोलेगी " और योगेन्द्र वर्मा जी से तो परिचय हुआ ही ,गीता जी एक उम्दा समीक्षक भी है यह जानकर ख़ुशी हुई। हार्दिक बधाई।