Wednesday, April 2, 2014

कुछ कवितायें ......नरेश सक्सेना

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बांसुरी__

बांसुरी के इतिहास में
उन कीड़ों का कोई ज़िक्र नहीं
जिन्होंने भूख मिटाने के लिए
बांसों में छेद कर दिए थे.

और जब-जब हवा उन छेदों से गुजरती
तो बांसों का रोना सुनायी देता

कीड़ों को तो पता ही नहीं था
कि वे संगीत के इतिहास में हस्तक्षेप
कर रहे हैं
और एक ऐसे वाद्य का आविष्कार
जिसमें बजाने वाले की सांसें बजती हैं.

मैंने कभी लिखा था
कि बांसुरी में सांस नहीं बजती
बांस नहीं बजता
बजाने वाला बजता है

अब
जब-जब बजाता हूं बांसुरी
तो राग चाहे जो हो
उसमें कीड़ों की भूख
और बांसों का रोना भी सुनायी देता है.
……







आधा चांद माँगता है पूरी रात____

पूरी रात के लिए मचलता है
आधा समुद्र
आधे चांद को मिलती है पूरी रात
आधी पृथ्वी की पूरी रात
आधी पृथ्वी के हिस्से में आता है
पूरा सूर्य

आधे से अधिक
बहुत अधिक मेरी दुनिया के करोड़ों-करोड़ लोग
आधे वस्त्रों से ढांकते हुए पूरा तन
आधी चादर में फैलाते हुए पूरे पांव
आधे भोजन से खींचते पूरी ताकत
आधी इच्छा से जीते पूरा जीवन
आधे इलाज की देते पूरी फीस
पूरी मृत्यु
पाते आधी उम्र में।

आधी उम्र, बची आधी उम्र नहीं
बीती आधी उम्र का बचा पूरा भोजन
पूरा स्वाद
पूरी दवा
पूरी नींद
पूरा चैन
पूरा जीवन

पूरे जीवन का पूरा हिसाब हमें चाहिए

हम नहीं समुद्र, नहीं चांद, नहीं सूर्य
हम मनुष्य, हम--
आधे चौथाई या एक बटा आठ
पूरे होने की इच्छा से भरे हम मनुष्य
……… 




मिट्टी __

नफ़रत पैदा करती है नफ़रत
और प्रेम से जनमता है प्रेम
इंसान तो इंसान, धर्मग्रंथों का यह ज्ञान
तो मिट्टी तक के सामने ठिठककर रह जाता है

मिट्टी के इतिहास में मिट्टी के खिलौने हैं
खिलौनों के इतिहास में हैं बच्चे
और बच्चों के इतिहास में बहुत से स्वप्न हैं
जिन्हें अभी पूरी तरह देखा जाना शेष है

नौ बरस की टीकू तक जानती है ये बात
कि मिट्टी से फूल पैदा होते हैं
फूलों से शहद पैदा होता है
और शहद से पैदा होती है बाक़ी कायनात
मिट्टी से मिट्टी पैदा नहीं होती
……


प्रेषिता 
गीता पंडित 

साभार 
(कविता कोश)





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